दीपक की लौ
गाँव का नाम था रामपुर, जहाँ ज़िंदगी धीरे-धीरे बहती थी। वहीं रहता था आरव, एक गरीब किसान का बेटा। उसका सपना था – शिक्षक बनना, ताकि गाँव के बच्चों को वो शिक्षा दे सके जो उसके पिता को कभी न मिल पाई।
लेकिन हालात उसके बिल्कुल खिलाफ थे। घर में दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल थी। स्कूल की फीस देने के पैसे नहीं थे, और किताबें तो एक सपने जैसी लगती थीं। मगर आरव के हौसले बुलंद थे। वो दिन में खेतों में काम करता और रात में गाँव के पुराने मंदिर में जल रही ढीमी दीपक की रोशनी में पढ़ाई करता।
एक दिन गाँव में एक बड़ा अफसर आया। उसने आरव को मंदिर में पढ़ते देखा। पूछने पर आरव ने कहा, "सर, रोशनी कम है लेकिन सपने बड़े हैं।" अफसर उसकी बातों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने आरव की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने का वादा किया।
आरव ने जी-जान से पढ़ाई की। वो हर रात दीपक की लौ के सामने बैठता, ठंडी हवाओं से कांपते हाथों से पन्ने पलटता, लेकिन कभी हार नहीं मानी। सालों बाद, आरव ने यूपीएससी पास कर ली और आईएएस अफसर बन गया।
जब वो पहली बार अपने गाँव लौटा, तो लोगों ने उसका भव्य स्वागत किया। लेकिन आरव सबसे पहले गया — उस पुराने मंदिर के दीपक के पास। उसने वहाँ बैठकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, जैसे उसने वादा किया था।
उसने गाँव में एक स्कूल खोला, और कहा – "अगर मेरे जैसे लड़के को मौका मिल सकता है, तो हर बच्चे के भीतर एक उजाला छुपा है – बस जरूरत है उसे जलाए रखने की।"
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सीख: हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादा मजबूत हो, तो दीपक की लौ भी अंधेरे को चीर सकती है।